बागानों में स्वराज
- इंडियन एमिग्रेशन ऐक्ट 1859 के अनुसार, चाय के बागानों में काम करने वाले मजदूरों को बिना अनुमति के बागान छोड़कर जाना मना था। जब असहयोग आंदोलन की खबर बागानों तक पहुँची, तो कई मजदूरों ने अधिकारियों की बात मानने से इंकार कर दिया। बागानों को छोड़कर वे अपने घरों की तरफ चल पड़े। लेकिन रेलवे और स्टीमर की हड़ताल के कारण वे बीच में ही फंस गए। पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और बुरी तरह पीटा।
- कई विश्लेषकों का मानना है आंदोलन के सही मतलब को कांग्रेस द्वारा ठीक तरीके से नहीं समझाया गया था। विभिन्न लोगों ने अपने-अपने तरीके से इसका मतलब निकाला था। उनके लिए स्वराज का मतलब था उनकी हर समस्या का अंत। लेकिन समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों ने गाँधी जी का नाम जपना शुरु कर दिया और स्वतंत्र भारत के नारे लगाने शुरु कर दिए। ऐसा कहा जा सकता है, कि वे अपनी समझ से परे उस विस्तृत आंदोलन से किसी न किसी रूप में जुड़ने की कोशिश कर रहे थे।
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